Bhagavad Gita: Chapter <%= chapter %>, Verse <%= verse %>

मयाऽध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरम्। हेतुनाऽनेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते।।9.10।।

mayādhyakṣheṇa prakṛitiḥ sūyate sa-charācharam hetunānena kaunteya jagad viparivartate

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Word Meanings

mayāby me
adhyakṣheṇadirection
prakṛitiḥmaterial energy
sūyatebrings into being
saboth
chara-acharamthe animate and the inanimate
hetunāreason
anenathis
kaunteyaArjun, the son of Kunti
jagatthe material world
viparivartateundergoes the changes
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अनुवाद

।।9.10।। प्रकृति मेरी अध्यक्षतामें सम्पूर्ण चराचर जगत् को रचती है। हे कुन्तीनन्दन ! इसी हेतुसे जगत् का विविध प्रकारसे परिवर्तन होता है।

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टीका

।।9.10।। व्याख्या--मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरम्-- मेरेसे सत्ता-स्फूर्ति पाकर ही प्रकृति चर-अचर, जड-चेतन आदि भौतिक सृष्टिको रचती है। जैसे बर्फका जमना, हीटरका जलना, ट्राम और रेलका आना-जाना, लिफ्टका चढ़ना-उतरना, हजारों मील दूरीपर बोले जानेवाले शब्दोंको सुनना, हजारों मील दूरीपर होनेवाले नाटक आदिको देखना, शरीरके भीतरका चित्र लेना, अल्पसमयमें ही बड़े-से-बड़ा हिसाब कर लेना, आदि-आदि कार्य विभिन्न-विभिन्न

यन्त्रोंके द्वारा होते हैं। परन्तु उन सभी यन्त्रोंमें शक्ति बिजलीकी ही होती है। बिजलीकी शक्तिके बिना वे यन्त्र स्वयं काम कर ही नहीं सकते; क्योंकि उन यन्त्रोंमें बिजलीको छोड़कर कोई सामर्थ्य नहीं है। ऐसे ही संसारमें जो कुछ परिवर्तन हो रहा है अर्थात् अनन्त ब्रह्माण्डोंका सर्जन, पालन और संहार, स्वर्गादि लोकोंमें और नरकोंमें पुण्य-पापके फलका भोग, तरह-तरहकी विचित्र परिस्थितियाँ और घटनाएँ, तरह-तरहकी आकृतियाँ,

वेश-भूषा, स्वभाव आदि जो कुछ हो रहा है, वह सब-का-सब प्रकृतिके द्वारा ही हो रहा है; पर वास्तवमें हो रहा है भगवान्की अध्यक्षता अर्थात् सत्ता-स्फूर्तिसे ही। भगवान्की सत्ता-स्फूर्तिके बिना प्रकृति ऐसे विचित्र काम कर ही नहीं सकती; क्योंकि भगवान्को छोड़कर प्रकृतिमें ऐसी स्वतन्त्र सामर्थ्य ही नहीं है कि जिससे वह ऐसे-ऐसे काम कर सके। तात्पर्य यह हुआ कि जैसे बिजलीमें सब शक्तियाँ हैं, पर वे मशीनोंके द्वारा ही प्रकट होती हैं, ऐसे ही भगवान्में अनन्त शक्तियाँ हैं, पर वे प्रकृतिके द्वारा ही प्रकट होती हैं।

भगवद गीता 9.10 - अध्याय 9 श्लोक 10 हिंदी और अंग्रेजी