Bhagavad Gita: Chapter <%= chapter %>, Verse <%= verse %>

ज्ञानं तेऽहं सविज्ञानमिदं वक्ष्याम्यशेषतः। यज्ज्ञात्वा नेह भूयोऽन्यज्ज्ञातव्यमवशिष्यते।।7.2।।

jñānaṁ te ’haṁ sa-vijñānam idaṁ vakṣhyāmyaśheṣhataḥ yaj jñātvā neha bhūyo ’nyaj jñātavyam-avaśhiṣhyate

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Word Meanings

jñānamknowledge
teunto you
ahamI
sawith
vijñānamwisdom
idamthis
vakṣhyāmishall reveal
aśheṣhataḥin full
yatwhich
jñātvāhaving known
nanot
ihain this world
bhūyaḥfurther
anyatanything else
jñātavyamto be known
avaśhiṣhyateremains
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अनुवाद

।।7.2।। तेरे लिये मैं विज्ञानसहित ज्ञान सम्पूर्णतासे कहूँगा, जिसको जाननेके बाद फिर यहाँ कुछ भी जानना बाकी नहीं रहेगा।

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टीका

।।7.2।। व्याख्या--'ज्ञानं तेऽहं सविज्ञानमिदं वक्ष्याम्यशेषतः'--भगवान् कहते हैं कि भैया अर्जुन! अब मैं विज्ञानसहित ज्ञान कहूँगा (टिप्पणी प0 392.1), तुम्हें कहूँगा और मैं खुद कहूँगा तथा सम्पूर्णतासे कहूँगा। ऐसे तो हरेक आदमी हरेक गुरुसे मेरे स्वरूपके बारेमें सुनता है और उससे लाभ भी होता है; परन्तु तुम्हें मैं स्वयं कह रहा हूँ। स्वयं कौन? जो समग्र परमात्मा है, वह मैं स्वयं! मैं स्वयं मेरे स्वरूपका जैसा

वर्णन कर सकता हूँ, वैसा दूसरे नहीं कर सकते; क्योंकि वे तो सुनकर और अपनी बुद्धिके अनुसार विचार करके ही कहते हैं (टिप्पणी प0 392.2)। उनकी बुद्धि समष्टि बुद्धिका एक छोटा-सा अंश है, वह कितना जान सकती है !वे तो पहले अनजान होकर फिर जानकार बनते हैं, पर मैं सदा अलुप्तज्ञान हूँ। मेरेमें अनजानपना न है, न कभी था, न होगा और न होना सम्भव ही है। इसलिये मैं तेरे लिये उस तत्त्वका वर्णन करूँगा, जिसको जाननेके बाद और

कुछ जानना बाकी नहीं रहेगा। दसवें अध्यायके सोलहवें श्लोकमें अर्जुन कहते हैं कि आप अपनी सब-की-सब विभूतियोंको कहनेमें समर्थ हैं--'वक्तुमर्हस्यशेषेण दिव्या ह्यात्मविभूतयः' तो उसके उत्तरमें भगवान् कहते हैं कि मेरे विस्तारका अन्त नहीं है इसलिये प्रधानतासे कहूँगा--'प्राधान्यतः कुरुश्रेष्ठ नास्त्यन्तो विस्तरस्य मे'(10। 19)। फिर अन्तमें कहते हैं कि मेरी विभूतियोंका अन्त नहीं है--'नान्तोऽस्ति मम दिव्यानां

विभूतीनां परंतप' (10। 40)। यहाँ (7। 2 में) भगवान् कहते हैं कि मैं विज्ञानसहित ज्ञानको सम्पूर्णतासे कहूँगा, शेष नहीं रखूँगा--'अशेषतः।' इसका तात्पर्य यह समझना चाहिये कि मैं तत्त्वसे कहूँगा। तत्त्वसे कहनेके बाद कहना, जानना कुछ भी बाकी नहीं रहेगा।दसवें अध्यायमें विभूति और योगकी बात आयी कि भगवान्की विभूतियोंका और योगका अन्त नहीं है। अभिप्राय है कि विभूतियोंका अर्थात् भगवान्की जो अलग-अलग शक्तियाँ हैं, उनका और भगवान्के योगका अर्थात् सामर्थ्य, ऐश्वर्यका अन्त नहीं आता। रामचरितमानसमें कहा है--

भगवद गीता 7.2 - अध्याय 7 श्लोक 2 हिंदी और अंग्रेजी