Bhagavad Gita: Chapter <%= chapter %>, Verse <%= verse %>

प्रशान्तात्मा विगतभीर्ब्रह्मचारिव्रते स्थितः। मनः संयम्य मच्चित्तो युक्त आसीत मत्परः।।6.14।।

praśhāntātmā vigata-bhīr brahmachāri-vrate sthitaḥ manaḥ sanyamya mach-chitto yukta āsīta mat-paraḥ

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Word Meanings

praśhāntaserene
ātmāmind
vigata-bhīḥfearless
brahmachāri-vratein the vow of celibacy
sthitaḥsituated
manaḥmind
sanyamyahaving controlled
mat-chittaḥmeditate on me (Shree Krishna)
yuktaḥengaged
āsītashould sit
mat-paraḥhaving me as the supreme goal
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अनुवाद

।।6.14।। जिसका अन्तःकरण शान्त है, जो भय-रहित है और जो ब्रह्मचारिव्रतमें स्थित है, ऐसा सावधान योगी मनका संयम करके मेरेमें चित्त लगाता हुआ मेरे परायण होकर बैठे।

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टीका

।।6.14।। व्याख्या--'प्रशान्तात्मा'--जिसका  अन्तःकरण राग-द्वेषसे रहित है, वह 'प्रशान्तात्मा' है। जिसका सांसारिक विशेषता प्राप्त करनेका, ऋद्धि-सिद्धि आदि प्राप्त करनेका उद्देश्य न होकर केवल परमात्मप्राप्तिका ही दृढ़ उद्देश्य होता है, उसके राग-द्वेष शिथिल होकर मिट जाते हैं। राग-द्वेष मिटनेपर स्वतः शान्ति आ जाती है, जो कि स्वतःसिद्ध है। तात्पर्य है कि संसारके सम्बन्धके कारण ही हर्ष, शोक, राग-द्वेष आदि

द्वन्द्व होते हैं और इन्हीं द्वन्द्वोंके कारण शान्ति भङ्ग होती है। जब ये द्वन्द्व मिट जाते हैं, तब स्वतःसिद्ध शान्ति प्रकट हो जाती है। उस स्वतःसिद्ध शान्तिको प्राप्त करनेवालेका नाम ही 'प्रशान्तात्मा' है।

भगवद गीता 6.14 - अध्याय 6 श्लोक 14 हिंदी और अंग्रेजी