यो मामजमनादिं च वेत्ति लोकमहेश्वरम्। असम्मूढः स मर्त्येषु सर्वपापैः प्रमुच्यते।।10.3।।
yo māmajam anādiṁ cha vetti loka-maheśhvaram asammūḍhaḥ sa martyeṣhu sarva-pāpaiḥ pramuchyate
Word Meanings
अनुवाद
।।10.3।। जो मनुष्य मुझे अजन्मा, अनादि और सम्पूर्ण लोकोंका महान् ईश्वर जानता है अर्थात् दृढ़तासे मानता है, वह मनुष्योंमें असम्मूढ़ (जानकार) है और वह सम्पूर्ण पापोंसे मुक्त हो जाता है।
टीका
।।10.3।। व्याख्या --'यो मामजमनादिं च वेत्ति लोकमहेश्वरम्'-- पीछेके श्लोकमें भगवान्के प्रकट होनेको जाननेका विषय नहीं बताया है। इस विषयको तो मनुष्य भी नहीं जानता, पर जितना जाननेसे मनुष्य अपना कल्याण कर ले, उतना तो वह जान ही सकता है। वह जानना अर्थात् मानना यह है कि भगवान् अज अर्थात् जन्मरहित हैं। वे अनादि हैं अर्थात् यह जो काल कहा जाता है, जिसमें आदि-अनादि शब्दोंका प्रयोग होता है, भगवान् उस कालके भी
काल हैं। उन कालातीत भगवान्में कालका भी आदि और अन्त हो जाता है। भगवान् सम्पूर्ण लोकोंके महान् ईश्वर हैं अर्थात् स्वर्ग, पृथ्वी और पातालरूप जो त्रिलोकी है तथा उस त्रिलोकीमें जितने प्राणी हैं और उन प्राणियोंपर शासन करनेवाले (अलग-अलग अधिकार-प्राप्त) जितने ईश्वर (मालिक) हैं, उन सब ईश्वरोंके भी महान् ईश्वर भगवान् हैं। इस प्रकार जाननेसे अर्थात् श्रद्धा-विश्वासपूर्वक दृढ़तासे माननेसे मनुष्यको भगवान्के अज, अविनाशी और लोकमहेश्वर होनेमें कभी किञ्चिन्मात्र भी सन्देह नहीं होता।