Bhagavad Gita: Chapter <%= chapter %>, Verse <%= verse %>

भूतग्रामः स एवायं भूत्वा भूत्वा प्रलीयते। रात्र्यागमेऽवशः पार्थ प्रभवत्यहरागमे।।8.19।।

bhūta-grāmaḥ sa evāyaṁ bhūtvā bhūtvā pralīyate rātryāgame ’vaśhaḥ pārtha prabhavatyahar-āgame

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Word Meanings

bhūta-grāmaḥthe multitude of beings
saḥthese
evacertainly
ayamthis
bhūtvā bhūtvārepeatedly taking birth
pralīyatedissolves
rātri-āgamewith the advent of night
avaśhaḥhelpless
pārthaArjun, the son of Pritha
prabhavatibecome manifest
ahaḥ-āgamewith the advent of day
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अनुवाद

।।8.19।। हे पार्थ ! वही यह प्राणिसमुदाय उत्पन्न हो-होकर प्रकृतिके परवश हुआ ब्रह्माके दिनके समय उत्पन्न होता है और ब्रह्माकी रात्रिके समय लीन होता है।

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टीका

।।8.19।। व्याख्या --'भूतग्रामः स एवायम्'--अनादिकालसे जन्म-मरणके चक्करमें पड़ा हुआ यह प्राणिसमुदाय वही है, जो कि साक्षात् मेरा अंश, मेरा स्वरूप है। मेरा सनातन अंश होनेसे यह नित्य है। सर्ग और प्रलय तथा महासर्ग और महाप्रलयमें भी यही था और आगे भी यही रहेगा। इसका न कभी अभाव हुआ है और न आगे कभी इसका अभाव होगा। तात्पर्य है कि यह अविनाशी है, इसका कभी विनाश नहीं होता। परन्तु भूलसे यह प्रकृतिके साथ अपना सम्बन्ध

मान लेता है। प्राकृत पदार्थ (शरीर आदि) तो बदलते रहते हैं, उत्पन्न और नष्ट होते रहते हैं, पर यह उनके सम्बन्धको पकड़े रहता है। यह कितने आश्चर्यकी बात है कि सम्बन्धी (सांसारिक पदार्थ) तो नहीं रहते, पर उनका सम्बन्ध रहता है; क्योंकि उस सम्बन्धको स्वयंने पकड़ा है। अतः यह स्वयं जबतक उस सम्बन्धको नहीं छोड़ता, तबतक उसको दूसरा कोई छुड़ा नहीं सकता। उस सम्बन्धको छोड़नेमें यह स्वतन्त्र है, सबल है। वास्तवमें यह

उस सम्बन्धको रखनेमें सदा परतन्त्र है; क्योंकि वे पदार्थ तो हरदम बदलते रहते हैं, पर यह नया-नया सम्बन्ध पकड़ता रहता है। जैसे, बालकपनको इसने नहीं छोड़ा और न छोड़ना चाहा, पर वह छूट गया। ऐसे ही जवानीको इसने नहीं छोड़ा, पर वह छूट गयी। और तो क्या, यह शरीरको भी छोड़ना नहीं चाहता, पर वह भी छूट जाता है। तात्पर्य यह हुआ कि प्राकृत पदार्थ तो छूटते ही रहते हैं, पर यह जीव उन पदार्थोंके साथ अपने सम्बन्धको बनाये

रखता है, जिससे,इसको बार-बार शरीर धारण करने पड़ते हैं, बार-बार जन्मना-मरना पड़ता है। जबतक यह उस माने हुए सम्बन्धको नहीं छोड़ेगा तबतक यह जन्ममरणकी परम्परा चलती ही रहेगी, कभी मिटेगी नहीं।

भगवद गीता 8.19 - अध्याय 8 श्लोक 19 हिंदी और अंग्रेजी