पुण्यो गन्धः पृथिव्यां च तेजश्चास्मि विभावसौ। जीवनं सर्वभूतेषु तपश्चास्मि तपस्विषु।।7.9।।
puṇyo gandhaḥ pṛithivyāṁ cha tejaśh chāsmi vibhāvasau jīvanaṁ sarva-bhūteṣhu tapaśh chāsmi tapasviṣhu
Word Meanings
अनुवाद
।।7.9।। पृथ्वीमें पवित्र गन्ध मैं हूँ, और अग्निमें तेज मैं हूँ, तथा सम्पूर्ण प्राणियोंमें जीवनीशक्ति मैं हूँ और तपस्वियोंमें तपस्या मैं हूँ।
टीका
।।7.9।। व्याख्या--'पुण्यो गन्धः पृथिव्याम्'--पृथ्वी गन्ध-तन्मात्रासे उत्पन्न होती है, गन्ध-तन्मात्रारूपसे रहती है और गन्ध-तन्मात्रामें ही लीन होती है। तात्पर्य है कि गन्धके बिना पृथ्वी कुछ नहीं है। भगवान् कहते हैं कि पृथ्वीमें वह पवित्र गन्ध मैं हूँ।यहाँ गन्धके साथ पुण्यः'विशेषण देनेका तात्पर्य है कि गन्धमात्र पृथ्वीमें रहती है। उसमें पुण्य अर्थात् पवित्र गन्ध तो पृथ्वीमें स्वाभाविक रहती है, पर दुर्गन्ध किसी विकृतिसे प्रकट होती है।