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स तया श्रद्धया युक्तस्तस्याराधनमीहते। लभते च ततः कामान्मयैव विहितान् हि तान्।।7.22।।

sa tayā śhraddhayā yuktas tasyārādhanam īhate labhate cha tataḥ kāmān mayaiva vihitān hi tān

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Word Meanings

saḥhe
tayāwith that
śhraddhayāfaith
yuktaḥendowed with
tasyaof that
ārādhanamworship
īhatetries to engange in
labhateobtains
chaand
tataḥfrom that
kāmāndesires
mayāby me
evaalone
vihitāngranted
hicertainly
tānthose
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अनुवाद

।।7.22।। उस (मेरे द्वारा दृढ़ की हुई) श्रद्धासे युक्त होकर वह मनुष्य (सकामभावपूर्वक) उस देवताकी उपासना करता है और उसकी वह कामना पूरी भी होती है; परन्तु वह कामना-पूर्ति मेरे द्वारा  विहित की हुई होती है।

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टीका

।।7.22।। व्याख्या--स तया श्रद्धया युक्तः ৷৷. मयैव विहितान्हि तान् मेरे द्वारा दृढ़ की हुई श्रद्धासे सम्पन्न हुआ वह मनुष्य उस देवताकी आराधनाकी चेष्टा करता है और उस देवतासे जिस कामनापूर्तिकी आशा रखता है, उस कामनाकी पूर्ति होती है। यद्यपि वास्तवमें उस कामनाकी पूर्ति मेरे द्वारा ही की हुई होती है; परन्तु वह उसको देवतासे ही पूरी की हुई मानता है। वास्तवमें देवताओंमें मेरी ही शक्ति है और मेरे ही विधानसे

वे उनकी कामनापूर्ति करते हैं। जैसे सरकारी अफसरोंको एक सीमित अधिकार दिया जाता है कि तुमलोग अमुक विभागमें अमुक अवसरपर इतना खर्च कर सकते हो, इतना इनाम दे सकते हो। ऐसे ही देवताओंमें एक सीमातक ही देनेकी शक्ति होती है; अतः वे उतना ही दे सकते हैं, अधिक नहीं। देवताओंमें अधिक-से-अधिक इतनी शक्ति होती है कि वे अपने-अपने उपासकोंको अपने-अपने लोकोंमें ले जा सकते हैं। परन्तु अपनी उपासनाका फल भोगनेपर उनको वहाँसे

लौटकर पुनः संसारमें आना पड़ता है (गीता 8। 16)।यहाँ 'मयैव'कहनेका तात्पर्य है कि संसारमें स्वतः जो कुछ संचालन हो रहा है, वह सब मेरा ही किया हुआ है। अतः जिस किसीको जो कुछ मिलता है, वह सब मेरे द्वारा विधान किया हुआ ही मिलता है। कारण कि मेरे सिवाय विधान करनेवाला दूसरा कोई नहीं है। अगर कोई मनुष्य इस रहस्यको समझ ले, तो फिर वह केवल मेरी तरफ ही खिंचेगा।

भगवद गीता 7.22 - अध्याय 7 श्लोक 22 हिंदी और अंग्रेजी