Bhagavad Gita: Chapter <%= chapter %>, Verse <%= verse %>

सुहृन्मित्रार्युदासीनमध्यस्थद्वेष्यबन्धुषु। साधुष्वपि च पापेषु समबुद्धिर्विशिष्यते।।6.9।।

suhṛin-mitrāryudāsīna-madhyastha-dveṣhya-bandhuṣhu sādhuṣhvapi cha pāpeṣhu sama-buddhir viśhiṣhyate

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Word Meanings

su-hṛittoward the well-wishers
mitrafriends
arienemies
udāsīnaneutral persons
madhya-sthamediators
dveṣhyathe envious
bandhuṣhurelatives
sādhuṣhupious
apias well as
chaand
pāpeṣhuthe sinners
sama-buddhiḥof impartial intellect
viśhiṣhyateis distinguished
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अनुवाद

।।6.9।। सुहृद्, मित्र, वैरी, उदासीन, मध्यस्थ, द्वेष्य और सम्बन्धियोंमें तथा साधु-आचरण करनेवालोंमें और पाप-आचरण करनेवालोंमें भी समबुद्धिवाला मनुष्य श्रेष्ठ है।

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टीका

।।6.9।। व्याख्या--[आठवें श्लोकमें पदार्थोंमें समता बतायी, अब इस श्लोकमें व्यक्तियोंमें समता बताते हैं। व्यक्तियोंमें समता बतानेका तात्पर्य है कि वस्तु तो अपनी तरफसे कोई क्रिया नहीं करती; अतः उसमें समबुद्धि होना सुगम है, परन्तु व्यक्ति तो अपने लिये और दूसरोंके लिये भी क्रिया करता है; अतः उसमें समबुद्धि होना कठिन है। इसलिये व्यक्तियोंके आचरणोंको देखकर भी जिसकी बुद्धिमें, विचारमें कोई विषमता या पक्षपात नहीं होता, ऐसा समबुद्धिवाला पुरुष श्रेष्ठ है।]

भगवद गीता 6.9 - अध्याय 6 श्लोक 9 हिंदी और अंग्रेजी