प्रशान्तमनसं ह्येनं योगिनं सुखमुत्तमम्। उपैति शान्तरजसं ब्रह्मभूतमकल्मषम्।।6.27।।
praśhānta-manasaṁ hyenaṁ yoginaṁ sukham uttamam upaiti śhānta-rajasaṁ brahma-bhūtam akalmaṣham
Word Meanings
अनुवाद
।।6.27।। जिसके सब पाप नष्ट हो गये हैं, जिसका रजोगुण तथा मन सर्वथा शान्त(निर्मल) हो गया है, ऐसे इस ब्रह्मस्वरूप योगीको निश्चित ही उत्तम (सात्त्विक) सुख प्राप्त होता है।
टीका
।।6.27।। व्याख्या--'प्रशान्तमनसं ह्येनं ৷৷. ब्रह्मभूतमकल्मषम्'--जिसके सम्पूर्ण पाप नष्ट हो गये हैं अर्थात् तमोगुण और तमोगुणकी अप्रकाश अप्रवृत्ति, प्रमाद और मोह (गीता 14। 13)--ये वृत्तियाँ नष्ट हो गयी हैं, ऐसे योगीको यहाँ 'अकल्मषम्' कहा गया है। जिसका रजोगुण और रजोगुणकी लोभ, प्रवृत्ति, नये-नये कर्मोंमें लगना, अशान्ति और स्पृहा (गीता 14। 12)--ये वृत्तियाँ शान्त हो गयी हैं, ऐसे योगीको यहाँ 'शान्तरजसम्' बताया गया है।