तद्बुद्धयस्तदात्मानस्तन्निष्ठास्तत्परायणाः। गच्छन्त्यपुनरावृत्तिं ज्ञाननिर्धूतकल्मषाः।।5.17।।
tad-buddhayas tad-ātmānas tan-niṣhṭhās tat-parāyaṇāḥ gachchhantyapunar-āvṛittiṁ jñāna-nirdhūta-kalmaṣhāḥ
Word Meanings
अनुवाद
।।5.17।। जिनकी बुद्धि तदाकार हो रही है, जिनका मन तदाकार हो रहा है, जिनकी स्थिति परमात्मतत्वमें है, ऐसे परमात्मपरायण साधक ज्ञानके द्वारा पापरहित होकर अपुनरावृत्ति (परमगति) को प्राप्त होते हैं।
टीका
5.17।। व्याख्या--[परमात्मतत्त्वका अनुभव करनेके लिये दो प्रकारके साधन हैं एक तो विवेकके द्वारा असत्का त्याग करनेपर सत्में स्वरूप-स्थिति स्वतः हो जाती है और दूसरा, सत्का चिन्तन करते-करते सत्की प्राप्ति हो जाती है। चिन्तनसे सत्की ही प्राप्ति होती है। असत्की प्राप्ति कर्मोंसे होती है, चिन्तनसे नहीं। उत्पत्ति-विनाशशील वस्तु कर्मसे मिलती है और नित्य परिपूर्ण तत्त्व चिन्तनसे मिलता है। चिन्तनसे परमात्मा
कैसे प्राप्त होते हैं--इसकी विधि इस श्लोकमें बताते हैं।]'तद्बुद्धयः' निश्चय करनेवाली वृत्तिका नाम 'बुद्धि' है। साधक पहले बुद्धिसे यह निश्चय करे कि सर्वत्र एक परमात्मतत्त्व ही परिपूर्ण है। संसारके उत्पन्न होनेसे पहले भी परमात्मा थे और संसारके नष्ट होनेके बाद भी परमात्मा रहेंगे। बीचमें भी संसारका जो प्रवाह चल रहा है, उसमें भी परमात्मा वैसे-के-वैसे ही हैं। इस प्रकार परमात्माकी सत्ता-(होनेपन-) में अटल निश्चय होना ही 'तद्बुद्धयः' पदका तात्पर्य है।