युक्तः कर्मफलं त्यक्त्वा शान्तिमाप्नोति नैष्ठिकीम्। अयुक्तः कामकारेण फले सक्तो निबध्यते।।5.12।।
yuktaḥ karma-phalaṁ tyaktvā śhāntim āpnoti naiṣhṭhikīm ayuktaḥ kāma-kāreṇa phale sakto nibadhyate
Word Meanings
अनुवाद
।।5.12।। कर्मयोगी कर्मफलका त्याग करके नैष्ठिकी शान्तिको प्राप्त होता है। परन्तु सकाम मनुष्य कामनाके कारण फलमें आसक्त होकर बँध जाता है।
टीका
5.12।। व्याख्या--'युक्तः'--इस पदका अर्थ प्रसङ्गके अनुसार लिया जाता है; जैसे--इसी अध्यायके आठवें श्लोकमें अपनेको अकर्ता माननेवाले सांख्ययोगीके लिये 'युक्तः' पद आया है, ऐसे ही यहाँ कर्मफलका त्याग करनेवाले कर्मयोगीके लिये 'युक्तः' पद आया है।जिनका उद्देश्य 'समता' है वे सभी पुरुष युक्त अर्थात् योगी हैं। यहाँ कर्मयोगीका प्रकरण चल रहा है, इसलिये यहाँ 'युक्तः' पद ऐसे कर्मयोगीके लिये आया है, जिसकी बुद्धि व्यवसायात्मिका होनेसे जिसमें सांसारिक कामनाओंका अभाव हो गया है।