Bhagavad Gita: Chapter <%= chapter %>, Verse <%= verse %>

श्रद्धावाँल्लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः। ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति।।4.39।।

śhraddhāvān labhate jñānaṁ tat-paraḥ sanyatendriyaḥ jñānaṁ labdhvā parāṁ śhāntim achireṇādhigachchhati

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Word Meanings

śhraddhā-vāna faithful person
labhateachieves
jñānamdivine knowledge
tat-paraḥdevoted (to that)
sanyatacontrolled
indriyaḥsenses
jñānamtranscendental knowledge
labdhvāhaving achieved
parāmsupreme
śhāntimpeace
achireṇawithout delay
adhigachchhatiattains
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अनुवाद

।।4.39।। जो जितेन्द्रिय तथा साधन-परायण है, ऐसा श्रद्धावान् मनुष्य ज्ञानको प्राप्त होता है और ज्ञानको प्राप्त होकर वह तत्काल परम शान्तिको प्राप्त हो जाता है।

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टीका

4.39।। व्याख्या--तत्परः संयतेन्द्रियः--इस श्लोकमें श्रद्धावान् पुरुषको ज्ञान प्राप्त होनेकी बात आयीहै। अपनेमें श्रद्धा कम होनेपर भी मनुष्य भूलसे अपनेको अधिक श्रद्धावाला मान सकता है, इसलिये भगवान्ने श्रद्धाकी पहचानके लिये दो विशेषण दिये हैं 'संयतेन्द्रियः' और तत्परः।जिसकी इन्द्रियाँ पूर्णतया वशमें हैं, वह 'संयतेन्द्रियः' है और जो अपने साधनमें तत्परतापूर्वक लगा हुआ है वह 'तत्परः' है। साधनमें तत्परताकी कसौटी है--इन्द्रियोंका संयत होना। अगर इन्द्रियाँ संयत नहीं हैं और विषय-भोगोंकी तरफ जाती हैं, तो साधन-परायणतामें कमी समझनी चाहिये।

भगवद गीता 4.39 - अध्याय 4 श्लोक 39 हिंदी और अंग्रेजी