Bhagavad Gita: Chapter <%= chapter %>, Verse <%= verse %>

एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः। स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप।।4.2।।

evaṁ paramparā-prāptam imaṁ rājarṣhayo viduḥ sa kāleneha mahatā yogo naṣhṭaḥ parantapa

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Word Meanings

evamthus
paramparāin a continuous tradition
prāptamreceived
imamthis (science)
rāja-ṛiṣhayaḥthe saintly kings
viduḥunderstood
saḥthat
kālenawith the long passage of time
ihain this world
mahatāgreat
yogaḥthe science of Yog
naṣhṭaḥlost
parantapaArjun, the scorcher of foes
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अनुवाद

।।4.2।। हे परंतप ! इस तरह परम्परासे प्राप्त इस कर्मयोग को राजर्षियोंने जाना। परन्तु बहुत समय बीत जानेके कारण वह योग इस मनुष्यलोकमें लुप्तप्राय हो गया।

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टीका

।।4.2।। व्याख्या--'एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः'--सूर्य, मनु, इक्ष्वाकु आदि राजाओंने कर्मयोगको भलीभाँति जानकर उसका स्वयं भी आचरण किया और प्रजासे भी वैसा आचरण कराया। इस प्रकार राजर्षियोंमें इस कर्मयोगकी परम्परा चली। यह राजाओं-(क्षत्रियों-) की खास (निजी) विद्या है, इसलिये प्रत्येक राजाको यह विद्या जाननी चाहिये। इसी प्रकार परिवार, समाज, गाँव आदिके जो मुख्य व्यक्ति हैं, उन्हें भी यह विद्या अवश्य

जाननी चाहिये।प्राचीनकालमें कर्मयोगको जाननेवाले राजालोग राज्यके भोगोंमें आसक्त हुए बिना सुचारुरूपसे राज्यका संचालन करते थे। प्रजाके हितमें उनकी स्वाभाविक प्रवृत्ति रहती थी। सूर्यवंशी राजाओंके विषयमें महाकवि कालिदास लिखते हैं

भगवद गीता 4.2 - अध्याय 4 श्लोक 2 हिंदी और अंग्रेजी