Bhagavad Gita: Chapter <%= chapter %>, Verse <%= verse %>

कर्मणो ह्यपि बोद्धव्यं बोद्धव्यं च विकर्मणः। अकर्मणश्च बोद्धव्यं गहना कर्मणो गतिः।।4.17।।

karmaṇo hyapi boddhavyaṁ boddhavyaṁ cha vikarmaṇaḥ akarmaṇaśh cha boddhavyaṁ gahanā karmaṇo gatiḥ

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Word Meanings

karmaṇaḥrecommended action
hicertainly
apialso
boddhavyamshould be known
boddhavyammust understand
chaand
vikarmaṇaḥforbidden action
akarmaṇaḥinaction
chaand
boddhavyammust understand
gahanāprofound
karmaṇaḥof action
gatiḥthe true path
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अनुवाद

।।4.17।। कर्मका तत्त्व भी जानना चाहिये और अकर्मका तत्त्व भी जानना चाहिये तथा विकर्मका तत्त्व भी जानना चाहिये; क्योंकि कर्मकी गति गहन है।

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टीका

4.17।। व्याख्या--'कर्मणो ह्यपि बोद्धव्यम्'-- कर्म करते हुए निर्लिप्त रहना ही कर्मके तत्त्वको जानना है, जिसका वर्णन आगे अठारहवें श्लोकमें 'कर्मण्यकर्म यः पश्येत्' पदोंसे किया गया है।कर्म स्वरूपसे एक दीखनेपर भी अन्तःकरणके भावके अनुसार उसके तीन भेद हो जाते हैं--कर्म, अकर्म और विकर्म। सकामभावसे की गयी शास्त्रविहित क्रिया 'कर्म' बन जाती है। फलेच्छा, ममता और आसक्तिसे रहित होकर केवल दूसरोंके हितके लिये

किया गया कर्म 'अकर्म' बन जाता है। विहित कर्म भी यदि दूसरेका हित करने अथवा उसे दुःख पहुँचानेके भावसे किया गया हो तो वह भी 'विकर्म' बन जाता है। निषिद्ध कर्म तो 'विकर्म' है ही।

भगवद गीता 4.17 - अध्याय 4 श्लोक 17 हिंदी और अंग्रेजी