Bhagavad Gita: Chapter <%= chapter %>, Verse <%= verse %>

अथ चैत्त्वमिमं धर्म्यं संग्रामं न करिष्यसि। ततः स्वधर्मं कीर्तिं च हित्वा पापमवाप्स्यसि।।2.33।।

atha chet tvam imaṁ dharmyaṁ saṅgrāmaṁ na kariṣhyasi tataḥ sva-dharmaṁ kīrtiṁ cha hitvā pāpam avāpsyasi

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Word Meanings

atha chetif, however
tvamyou
imamthis
dharmyam saṅgrāmamrighteous war
nanot
kariṣhyasiact
tataḥthen
sva-dharmamone’s duty in accordance with the Vedas
kīrtimreputation
chaand
hitvāabandoning
pāpamsin
avāpsyasiwill incur
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अनुवाद

।।2.33।। अब अगर तू यह धर्ममय युद्ध नहीं करेगा,  तो अपने धर्म और कीर्तिका त्याग करके पापको प्राप्त होगा।  

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टीका

2.33।। व्याख्या--'अथ चेत्त्वमिमं ৷৷. पापमवाप्स्यसि'-- यहाँ  'अथ' अव्यय पक्षान्तरमें आया है और  'चेत्'  अव्यय सम्भावनाके अर्थमें आया है। इनका तात्पर्य है कि यद्यपि तू युद्धके बिना रह नहीं सकेगा, अपने क्षात्र स्वभावके परवश हुआ तू युद्ध करेगा ही (गीता 18। 60), तथापि अगर ऐसा मान लें कि तू युद्ध नहीं करेगा, तो तेरे द्वारा क्षात्रधर्मका त्याग हो जायगा। क्षात्रधर्मका त्याग होनेसे तुझे पाप लगेगा और तेरी

कीर्तिका भी नाश होगा।  आप-से-आप प्राप्त हुए धर्मरूप कर्तव्यका त्याग करके तू क्या करेगा? अपने धर्मका त्याग करनेसे तुझे परधर्म स्वीकार करना पड़ेगा, जिससे तुझे पाप लगेगा। युद्धका त्याग करनेसे दूसरे लोग ऐसा मानेंगे कि अर्जुन-जैसा शूरवीर भी मरनेसे भयभीत हो गया ! इससे तेरी कीर्तिका नाश होगा।

भगवद गीता 2.33 - अध्याय 2 श्लोक 33 हिंदी और अंग्रेजी