Bhagavad Gita: Chapter <%= chapter %>, Verse <%= verse %>

जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च। तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि।।2.27।।

jātasya hi dhruvo mṛityur dhruvaṁ janma mṛitasya cha tasmād aparihārye ’rthe na tvaṁ śhochitum arhasi

0:00 / --:--

Word Meanings

jātasyafor one who has been born
hifor
dhruvaḥcertain
mṛityuḥdeath
dhruvamcertain
janmabirth
mṛitasyafor the dead
chaand
tasmāttherefore
aparihārye arthein this inevitable situation
nanot
tvamyou
śhochitumlament
arhasibefitting
•••

अनुवाद

।।2.27।। क्योंकि पैदा हुएकी जरूर मृत्यु होगी और मरे हुएका जरूर जन्म होगा। इस (जन्म-मरण-रूप परिवर्तन के प्रवाह) का परिहार अर्थात् निवारण नहीं हो सकता। अतः इस विषयमें तुम्हें शोक नहीं करना चाहिये।  

•••

टीका

2.27।। व्याख्या-- 'जातस्य हि ध्रुवो मृत्युध्रुवं जन्म मृतस्य च'-- पूर्वश्लोकके अनुसार अगर शरीरीको नित्य जन्मने और मरनेवाला भी मान लिया जाय, तो भी वह शोकका विषय नहीं हो सकता। कारण कि जिसका जन्म हो गया है, वह जरूर मरेगा और जो मर गया है, वह जरूर जन्मेगा।  'तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि'-- इसलिये कोई भी इस जन्म-मृत्युरूप प्रवाहका परिहार (निवारण) नहीं कर सकता; क्योंकि इसमें किसीका किञ्चिन्मात्र

भी वश नहीं चलता। यह जन्म-मृत्युरूप प्रवाह तो अनादिकालसे चला आ रहा है और अनन्तकालतक चलता रहेगा। इस दृष्टिसे तुम्हारे लिये शोक करना उचित नहीं है। ये धृतराष्ट्रके पुत्र जन्में हैं, तो जरूर मरेंगे। तुम्हारे पास ऐसा कोई उपाय नहीं है, जिससे तुम उनको बचा सको। जो मर जायेंगे, वे जरूर जन्मेंगे। उनको भी तुम रोक नहीं सकते। फिर शोक किस बातका?

भगवद गीता 2.27 - अध्याय 2 श्लोक 27 हिंदी और अंग्रेजी