Bhagavad Gita: Chapter <%= chapter %>, Verse <%= verse %>

न जायते म्रियते वा कदाचि न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः। अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे।।2.20।।

na jāyate mriyate vā kadāchin nāyaṁ bhūtvā bhavitā vā na bhūyaḥ ajo nityaḥ śhāśhvato ’yaṁ purāṇo na hanyate hanyamāne śharīre

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Word Meanings

na jāyateis not born
mriyatedies
or
kadāchitat any time
nanot
ayamthis
bhūtvāhaving once existed
bhavitāwill be
or
nanot
bhūyaḥfurther
ajaḥunborn
nityaḥeternal
śhāśhvataḥimmortal
ayamthis
purāṇaḥthe ancient
na hanyateis not destroyed
hanyamāneis destroyed
śharīrewhen the body
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अनुवाद

।।2.20।। यह शरीरी न कभी जन्मता है और न मरता है तथा यह उत्पन्न होकर फिर होनेवाला नहीं है। यह जन्मरहित, नित्य-निरन्तर रहनेवाला, शाश्वत और पुराण (अनादि) है। शरीरके मारे जानेपर भी यह नहीं मारा जाता।  

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टीका

2.20।। व्याख्या --[शरीरमें छः विकार होते हैं--उत्पन्न होना, सत्तावाला दीखना, बदलना, बढ़ना, घटना और नष्ट होना  (टिप्पणी प0 60.1) । यह शरीरी इन छहों विकारोंसे रहित है--यही बात भगवान् इस श्लोकमें बता रहे हैं]  (टिप्पणी प0 60.2) ।  'न जायते म्रियते वा कदाचिन्न'-- जैसे शरीर उत्पन्न होता है, ऐसे यह शरीरी कभी भी, किसी भी समयमें उत्पन्न नहीं होता। यह तो सदासे ही है। भगवान्ने इस शरीरीको अपना अंश बताते हुए इसको 'सनातन' कहा है  'ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः'  (15। 7)।

भगवद गीता 2.20 - अध्याय 2 श्लोक 20 हिंदी और अंग्रेजी