Bhagavad Gita: Chapter <%= chapter %>, Verse <%= verse %>

अर्जुन उवाचये शास्त्रविधिमुत्सृज्य यजन्ते श्रद्धयाऽन्विताः।तेषां निष्ठा तु का कृष्ण सत्त्वमाहो रजस्तमः।।17.1।।

arjuna uvācha ye śhāstra-vidhim utsṛijya yajante śhraddhayānvitāḥ teṣhāṁ niṣhṭhā tu kā kṛiṣhṇa sattvam āho rajas tamaḥ

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Word Meanings

arjunaḥ uvāchaArjun said
yewho
śhāstra-vidhimscriptural injunctions
utsṛijyadisregard
yajanteworship
śhraddhayā-anvitāḥwith faith
teṣhāmtheir
niṣhṭhāfaith
tuindeed
what
kṛiṣhṇaKrishna
sattvammode of goodness
āhoor
rajaḥmode of passion
tamaḥmode of ignorance
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अनुवाद

।।17.1।। अर्जुन बोले -- हे कृष्ण ! जो मनुष्य शास्त्र-विधिका त्याग करके श्रद्धापूर्वक देवता आदिका पूजन करते हैं, उनकी निष्ठा फिर कौन-सी है? सात्त्विकी है अथवा राजसी-तामसी?

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टीका

।।17.1।। व्याख्या    --   ये शास्त्रविधिमुत्सृज्य ৷৷. सत्त्वमाहो रजस्तमः -- श्रीमद्भगवद्गीतामें भगवान् श्रीकृष्ण और अर्जुनका संवाद सम्पूर्ण जीवोंके कल्याणके लिये है। उन दोनोंके सामने कलियुगकी जनता थी क्योंकि द्वापरयुग समाप्त हो रहा था। आगे आनेवाले कलियुगी जीवोंकी तरफ दृष्टि रहनेसे अर्जुन पूछते हैं कि महाराज जिन मनुष्योंका भाव बड़ा अच्छा है? श्रद्धाभक्ति भी है? पर शास्त्रविधिको जानते नहीं (टिप्पणी

प0 833.3)। यदि वे जान जायँ? तो पालन करने लग जायँ? पर उनको पता नहीं। अतः उनकी क्या स्थिति होती हैआगे आनेवाली जनतामें शास्त्रका ज्ञान बहुत कम रहेगा। उन्हें अच्छा सत्सङ्ग मिलना भी कठिन होगा क्योंकि अच्छे सन्तमहात्मा पहले युगोंमें भी कम हुए हैं? फिर कलियुगमें तो और भी कम होंगे। कम होनेपर भी यदि भीतर चाहना हो तो उन्हें सत्संग मिल सकता है। परन्तु मुश्किल यह है कि कलियुगमें दम्भ? पाखण्ड ज्यादा होनेसे कई

दम्भी और पाखण्डी पुरुष सन्त बन जाते हैं। अतः सच्चे सन्त पहचानमें आने मुश्किल हैं। इस प्रकार पहले तो सन्तमहात्मा मिलने कठिन हैं और मिल भी जायँ तो उनमेंसे कौनसे संत कैसे हैं -- इस बातकी पहचान प्रायः नहीं होती और पहचान हुए बिना उनका संग करके विशेष लाभ ले लें -- ऐसी बात भी नहीं है। अतः जो शास्त्रविधिको भी नहीं जानते और असली सन्तोंका सङ्ग भी नहीं मिलता? परन्तु जो कुछ यजनपूजन करते हैं? श्रद्धासे करते हैं

-- ऐसे मनुष्योंकी निष्ठा कौनसी होती है सात्त्विकी अथवा राजसीतामसीसत्त्वमाहो रजस्तमः पदोंमें सत्त्वगुणको दैवीसम्पत्तिमें और रजोगुण तथा तमोगुणको आसुरीसम्पत्तिमें ले लिया गया है। रजोगुणको आसुरीसम्पत्तिमें लेनेका कारण यह है कि रजोगुण तमोगुणके बहुत निकट है (टिप्पणी प0 834.1)। गीतामें कई जगह ऐसी बात आयी है जैसे -- दूसरे अध्यायके बासठवेंतिरसठवें श्लोकोंमें काम अर्थात् रजोगुणसे क्रोध और क्रोधसे मोहरूप तमोगुणका

उत्पन्न होना बताया गया है (टिप्पणी प0 834.2)। ऐसे ही अठारहवें अध्यायके सत्ताईसवें श्लोकमें हिंसात्मक और शोकान्वितको रजोगुणी कर्ताका लक्षण बताया गया है और अठारहवें अध्यायके ही पचीसवें श्लोकमें हिंसा को तामस कर्मका लक्षण और पैंतीसवें श्लोकमें शोक को तामस धृतिका लक्षण बताया गया है। इस प्रकार रजोगुण और तमोगुणके बहुतसे लक्षण आपसमें मिलते हैं।सात्त्विक भाव? आचरण और विचार दैवीसम्पत्तिके होते हैं और राजसीतामसी

भाव? आचरण और विचार आसुरीसम्पत्तिके होते हैं। सम्पत्तिके अनुसार ही निष्ठा होती है अर्थात् मनुष्यके जैसे भाव? आचरण और विचार होते हैं? उन्हींके अनुसार उसकी स्थिति (निष्ठा) होती है। स्थितिके अनुसार ही आगे गति होती है। आप कहते हैं कि शास्त्रविधिका त्याग करके मनमाने ढंगसे आचरण करनेपर सिद्धि? सुख और परमगति नहीं मिलती? तो जब उनकी निष्ठाका ही पता नहीं? फिर उनकी गतिका क्या पता लगे इसलिये आप उनकी निष्ठा बताइये?

जिससे पता लग जाय कि वे सात्त्विकी गतिमें जाननेवाले हैं या राजसीतामसी गतिमें।कृष्ण का अर्थ है -- खींचनेवाला। यहाँ कृष्ण सम्बोधनका तात्पर्य यह मालूम देता है कि आप ऐसे मनुष्योंको अन्तिम समयमें किस ओर खींचेगे उनको किस गतिकी तरफ ले जायँगे छठे अध्यायके सैंतीसवें श्लोकमें भी अर्जुनने गतिविषयक प्रश्नमें कृष्ण सम्बोधन दिया है -- कां गतिं कृष्ण गच्छति। यहाँ भी अर्जुनका निष्ठा पूछनेका तात्पर्य गतिमें ही है।मनुष्यको

भगवान् खींचते हैं या वह कर्मोंके अनुसार स्वयं खींचा जाता है वस्तुतः कर्मोंके अनुसार ही फल मिलता है? पर कर्मफलके विधायक होनेसे भगवान्का खींचना सम्पूर्ण फलोंमें होता है। तामसी कर्मोंका फल,नरक होगा? तो भगवान् नरकोंकी तरफ खींचेंगे। वास्तवमें नरकोंके द्वारा पापोंका नाश करके प्रकारान्तरसे भगवान् अपनी तरफ ही खींचते हैं। उनका किसीसे भी वैर या द्वेष नहीं है। तभी तो आसुरी योनियोंमें जानेवालोंके लिये भगवान्

कहते हैं कि वे मेरेको प्राप्त न होकर अधोगतिमें चले गये (16। 20)। कारण कि उनका अधोगतिमें जाना भगवान्को सुहाता नहीं है। इसलिये सात्त्विक मनुष्य हो? राजस मनुष्य हो या तामस मनुष्य हो? भगवान् सबको अपनी तरफ ही खींचते हैं। इसी भावसे यहाँ कृष्ण सम्बोधन आया है। सम्बन्ध --   शास्त्रविधिको न जाननेपर भी मनुष्यमात्रमें किसीनकिसी प्रकारकी स्वभावजा श्रद्धा तो रहती ही है। उस श्रद्धाके भेद आगेके श्लोकमें बताते हैं।

भगवद गीता 17.1 - अध्याय 17 श्लोक 1 हिंदी और अंग्रेजी