असत्यमप्रतिष्ठं ते जगदाहुरनीश्वरम्।अपरस्परसम्भूतं किमन्यत्कामहैतुकम्।।16.8।।
asatyam apratiṣhṭhaṁ te jagad āhur anīśhvaram aparaspara-sambhūtaṁ kim anyat kāma-haitukam
Word Meanings
अनुवाद
।।16.8।।वे कहा करते हैं कि संसार असत्य, अप्रतिष्ठित और बिना ईश्वरके अपने-आप केवल स्त्री-पुरुषके संयोगसे पैदा हुआ है। इसलिये काम ही इसका कारण है, और कोई कारण नहीं है।
टीका
।।16.8।। व्याख्या -- असत्यम् -- आसुर स्वभाववाले पुरुष कहा करते हैं कि यह जगत् असत्य है अर्थात् इसमें कोई भी बात सत्य नहीं है। जितने भी यज्ञ? दान? तप? ध्यान? स्वाध्याय? तीर्थ? व्रत आदि शुभकर्म किये जाते हैं? उनको वे सत्य नहीं मानते। उनको तो वे एक बहकावा मानते हैं।अप्रतिष्ठं ते जगदाहुरनीश्वरम् -- संसारमें आस्तिक पुरुषोंकी धर्म? ईश्वर? परलोक (टिप्पणी प0 896.1)। (पुनर्जन्म) आदिमें श्रद्धा होती है।
परन्तु वे आसुर मनुष्य धर्म? ईश्वर आदिमें श्रद्धा नहीं रखते अतः वे ऐसा मानते हैं कि इस संसारमें धर्मअधर्म? पुण्यपाप आदिकी कोई प्रतिष्ठा -- मर्यादा नहीं है। इस जगत्को वे बिना मालिकका कहते हैं अर्थात् इस जगत्को रचनेवाला? इसका शासन करनेवाला? यहाँपर किये हुए पापपुण्योंका फल भुगतानेवाला कोई (ईश्वर) नहीं है (टिप्पणी प0 816.2)। अपरस्परसम्भूतं किमन्यत् कामहैतुकम् -- वे कहते हैं कि स्त्रीको पुरुषकी और पुरुषको
स्त्रीकी कामना हो गयी। अतः उन दोनोंके परस्पर संयोगसे यह संसार पैदा हो गया। इसलिये काम ही इस संसारका हेतु है। इसके लिये ईश्वर? प्रारब्ध आदि किसीकी क्या जरूरत है ईश्वर आदिको इसमें कारण मानना ढकोसला है? केवल दुनियाको बहकाना है। सम्बन्ध -- जहाँ सद्भाव लुप्त हो जाते हैं? वहाँ सद्विचार काम नहीं करते अर्थात् सद्विचार प्रकट ही नहीं होते -- इसको अब आगेके श्लोकमें बताते हैं।