Bhagavad Gita: Chapter <%= chapter %>, Verse <%= verse %>

काममाश्रित्य दुष्पूरं दम्भमानमदान्विताः।मोहाद्गृहीत्वासद्ग्राहान्प्रवर्तन्तेऽशुचिव्रताः।।16.10।।

kāmam āśhritya duṣhpūraṁ dambha-māna-madānvitāḥ mohād gṛihītvāsad-grāhān pravartante ’śhuchi-vratāḥ

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Word Meanings

kāmamlust
āśhrityaharboring
duṣhpūraminsatiable
dambhahypocrisy
mānaarrogance
mada-anvitāḥclinging to false tenets
mohātthe illusioned
gṛihītvābeing attracted to
asatimpermanent
grāhānthings
pravartantethey flourish
aśhuchi-vratāḥwith impure resolve
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अनुवाद

।।16.10।।कभी पूरी न होनेवाली कामनाओंका आश्रय लेकर दम्भ, अभिमान और मदमें चूर रहनेवाले तथा अपवित्र व्रत धारण करनेवाले मनुष्य मोहके कारण दुराग्रहोंको धारण करके संसारमें विचरते रहते हैं।

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टीका

।।16.10।। व्याख्या --   काममाश्रित्य दुष्पूरम् -- वे आसुरी प्रकृतिवाले कभी भी पूरी न होनेवाली कामनाओंका आश्रय लेते हैं। जैसे कोई मनुष्य भगवान्का? कोई कर्तव्यका? कोई धर्मका? कोई स्वर्ग आदिका आश्रय लेता है? ऐसे ही आसुर प्राणी कभी पूरी न होनेवाली कामनाओंका आश्रय लेते हैं। उनके मनमें यह बात अच्छी तरहसे जँची हुई रहती है कि कामनाके बिना आदमी पत्थरजैसा हो जाता है कामनाके आश्रयके बिना आदमीकी उन्नति हो ही

नहीं सकती आज जितने आदमी नेता? पण्डित? धनी आदि हो गये हैं? वे सब कामनाके कारण ही हुए हैं। इस प्रकार कामनाके आश्रित रहनेवाले भगवान्को? परलोकको? प्रारब्ध आदिको नहीं मानते।अब उन कामनाओंकी पूर्ति किनके द्वारा करें उसके साथी (सहायक) कौन हैं तो बताते हैं --,दम्भमानमदान्विताः। वे दम्भ? मान? और मदसे युक्त रहते हैं अर्थात् वे उनकी कामनापूर्तिके बल हैं। जहाँ जिनके सामने जैसा बननेसे अपना मतलब सिद्ध होता हो अर्थात्

धन? मान? बड़ाई? पूजाप्रतिष्ठा? आदरसत्कार? वाहवाह आदि मिलते हों? वहाँ उनके सामने वैसा ही अपनेको दिखाना दम्भ है। अपनेको बड़ा मानना? श्रेष्ठ मानना मान है। हमारे पास इतनी विद्या? बुद्धि? योग्यता आदि है -- इस बातको लेकर नशासा आ जाना मद है। वे सदा दम्भ? मान और मदमें सने हुए रहते हैं? तदाकार रहते हैं।अशुचिव्रताः -- उनके व्रतनियम बड़े अपवित्र होते हैं जैसे -- इतने गाँवमें? इतने गायोंके बाड़ोंमें आग लगा देनी

है इतने आदमियोंको मार देना है आदि। ये वर्ण? आश्रम? आचारशुद्धि आदि सब ढकोसलाबाजी है अतः किसीके भी साथ खाओपीओ। हम कथा आदि नहीं सुनेंगे हम तीर्थ? मन्दिर आदि स्थानोंमें नहीं जायँगे -- ऐसे उनके व्रतनियम होते हैं।ऐसे नियमोंवाले डाकू भी होते हैं। उनका यह नियम रहता है कि बिना मारपीट किये ही कोई वस्तु दे दे? तो वे लेंगे नहीं। जबतक चोट नहीं लगायेंगे? घावसे खून नहीं टपकेगा? तबतक हम उसकी वस्तु नहीं लेंगे? आदि।मोहाद्

गृहीत्वासद्ग्राहान् -- मूढ़ताके कारण वे अनेक दुराग्रहोंको पकड़े रहते हैं। तामसी बुद्धिको लेकर चलना ही मूढ़ता है (गीता 18। 32)। वे शास्त्रोंकी? वेदोंकी? वर्णाश्रमोंकी और कुलपरम्पराकी मर्यादाको नहीं मानते? प्रत्युत इनके विपरीत चलनेमें? इनको भ्रष्ट करनेमें ही वे अपनी बहादुरी? अपना गौरव समझते हैं। वे अकर्तव्यको ही कर्तव्य और कर्तव्यको ही अकर्तव्य मानते हैं? हितको हि अहित और अहितको हि हित मानते हैं? ठीकको

ही बेठीक और बेठीकको ही ठीक मानते हैं। इस असद्विचारोंके कारण उनकी बुद्धि इतनी गिर जाती है कि वे यह कहने लग जाते हैं कि मातापिताका हमारेपर कोई ऋण नहीं है। उनसे हमारा क्या सम्बन्ध है झूठ? कपट? जालसाजी करके भी धन कैसे बचे आदि उनके दुराग्रह होते हैं।, सम्बन्ध --   सत्कर्म? सद्भाव और सद्विचारोंके अभावमें उन आसुरी प्रकृतिवालोंके नियम? भाव और आचरण किस उद्देश्यको लेकर और किस प्रकारके होते हैं? अब उनको आगेके दो श्लोकोंमें बताते हैं।

भगवद गीता 16.10 - अध्याय 16 श्लोक 10 हिंदी और अंग्रेजी