Bhagavad Gita: Chapter <%= chapter %>, Verse <%= verse %>

यावत्सञ्जायते किञ्चित्सत्त्वं स्थावरजङ्गमम्।क्षेत्रक्षेत्रज्ञसंयोगात्तद्विद्धि भरतर्षभ।।13.27।।

yāvat sañjāyate kiñchit sattvaṁ sthāvara-jaṅgamam kṣhetra-kṣhetrajña-sanyogāt tad viddhi bharatarṣhabha

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Word Meanings

yāvatwhatever
sañjāyatemanifesting
kiñchitanything
sattvambeing
sthāvaraunmoving
jaṅgamammoving
kṣhetrafield of activities
kṣhetra-jñaknower of the field
sanyogātcombination of
tatthat
viddhiknow
bharata-ṛiṣhabhabest of the Bharatas
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अनुवाद

।।13.27।।हे भरतवंशियोंमें श्रेष्ठ अर्जुन ! स्थावर और जंगम जितने भी प्राणी पैदा होते हैं, उनको तुम क्षेत्र और क्षेत्रज्ञके संयोगसे उत्पन्न हुए समझो।

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टीका

।।13.27।। व्याख्या --   यावत्संजायते ৷৷. क्षेत्रक्षेत्रज्ञसंयोगात् -- स्थिर रहनेवाले वृक्ष? लता? दूब? गुल्म? त्वक्सार? बेंत? बाँस? पहाड़ आदि जितने भी स्थावर प्राणी हैं और चलनेफिरनेवाले मनुष्य? देवता? पशु? पक्षी? कीट? पतंग? मछली? कछुआ आदि जितने भी जङ्गम (थलचर? जलचर? नभचर) प्राणी हैं? वे सबकेसब क्षेत्र और क्षेत्रज्ञके संयोगसे ही पैदा होते हैं।उत्पत्तिविनाशशील पदार्थ क्षेत्र हैं और जो इस क्षेत्रको जाननेवाला?

उत्पत्तिविनाशरहित एवं सदा एकरस रहनेवाला है? वह क्षेत्रज्ञ है। उस क्षेत्रज्ञ(प्रकृतिस्थ पुरुष)का जो शरीरके साथ मैंमेरेपनका सम्बन्ध मानना है -- यही क्षेत्र और क्षेत्रज्ञका संयोग है। इस माने हुए संयोगके कारण ही इस जीवको स्थावरजङ्गम योनियोंमें जन्म लेना पड़ता है। इसी क्षेत्रक्षेत्रज्ञके संयोगको पहले इक्कीसवें श्लोकमें,गुणसङ्गः पदसे कहा है। तात्पर्य यह हुआ कि निरन्तर परिवर्तनशील प्रकृति और प्रकृतिके कार्य

शरीरादिके साथ तादात्म्य कर लेनेसे स्वयं जीवात्मा भी अपनेको जन्मनेमरनेवाला मान लेता है।[स्थावरजङ्गम प्राणियोंके पैदा होनेकी बात तो यहाँ संजायते पदसे कह दी और उनके मरनेकी बात आगेके श्लोकमें विनश्यत्सु पदसे कहेंगे।]तद्विद्धि भरतर्षभ -- यह क्षेत्रज्ञ क्षेत्रके साथ अपना सम्बन्ध मानता है? इसीसे इसका जन्म होता है परन्तु जब यह शरीरके साथ अपना सम्बन्ध नहीं मानता? तब इसका जन्म नहीं होता -- इस बातको तुम ठीक

समझ लो। सम्बन्ध --   पूर्वश्लोकमें भगवान्ने बताया कि क्षेत्र(शरीर) के साथ सम्बन्ध रखनेसे? उसकी तरफ दृष्टि रखनेसे यह पुरुष जन्ममरणमें जाता है? तो अब प्रश्न होता है कि इस जन्ममरणके चक्करसे छूटनेके लिये उसको क्या करना चाहिये इसका उत्तर भगवान् आगेके श्लोकमें देते हैं।

भगवद गीता 13.27 - अध्याय 13 श्लोक 27 हिंदी और अंग्रेजी