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कस्माच्च ते न नमेरन्महात्मन् गरीयसे ब्रह्मणोऽप्यादिकर्त्रे। अनन्त देवेश जगन्निवास त्वमक्षरं सदसत्तत्परं यत्।।11.37।।

kasmāch cha te na nameran mahātman garīyase brahmaṇo ’py ādi-kartre ananta deveśha jagan-nivāsa tvam akṣharaṁ sad-asat tat paraṁ yat

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Word Meanings

kasmātwhy
chaand
teyou
na nameranshould they not bow down
mahā-ātmanThe Great one
garīyasewho are greater
brahmaṇaḥthan Brahma
apieven
ādi-kartreto the original creator
anantaThe limitless One
deva-īśhaLord of the devatās
jagat-nivāsaRefuge of the universe
tvamyou
akṣharamthe imperishable
sat-asatmanifest and non-manifest
tatthat
parambeyond
yatwhich
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अनुवाद

।।11.37।। हे महात्मन् ! गुरुओंके भी गुरु और ब्रह्माके भी आदिकर्ता आपके लिये (वे सिद्धगण) नमस्कार क्यों नहीं करें? क्योंकि हे अनन्त ! हे देवेश ! हे जगन्निवास ! आप अक्षरस्वरूप हैं; आप सत् भी हैं, असत् भी हैं, और सत्-असत् से पर भी जो कुछ है, वह भी आप ही हैं।

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टीका

।।11.37।। व्याख्या--'कस्माच्च ते न नमेरन्महात्मन् गरीयसे ब्रह्मणोऽप्यादिकर्त्रे'--आदिरूपसे प्रकट होनेवाले महान् स्वरूप आपको (पूर्वोक्त सिद्धगण) नमस्कार क्यों न करें? नमस्कार दोको किया जाता है -- (1) जिनसे मनुष्यको शिक्षा मिलती है, प्रकाश मिलता है; ऐसे आचार्य, गुरुजन आदिको नमस्कार किया जाता है और (2) जिनसे हमारा जन्म हुआ है, उन माता-पिताको तथा आयु, विद्या आदिमें अपनेसे बड़े पुरुषोंको नमस्कार किया जाता

है। अर्जुन कहते हैं कि आप गुरुओंके भी गुरु हैं--'गरीयसे' (टिप्पणी प0 600.1) और आप सृष्टिकी रचना करनेवाले पितामह ब्रह्माजीको भी उत्पन्न करनेवाले हैं -- 'ब्रह्मणोऽप्यादिकर्त्रे।' अतः सिद्ध महापुरुष आपको नमस्कार करें, यह उचित ही है।

भगवद गीता 11.37 - अध्याय 11 श्लोक 37 हिंदी और अंग्रेजी