Bhagavad Gita: Chapter <%= chapter %>, Verse <%= verse %>

यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा। तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसंभवम्।।10.41।।

yad yad vibhūtimat sattvaṁ śhrīmad ūrjitam eva vā tat tad evāvagachchha tvaṁ mama tejo ’nśha-sambhavam

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Word Meanings

yat yatwhatever
vibhūtimatopulent
sattvambeing
śhrī-matbeautiful
ūrjitamglorious
evaalso
or
tat tatall that
evaonly
avagachchhaknow
tvamyou
mamamy
tejaḥ-anśha-sambhavamsplendor
anśhaa part
sambhavamborn of
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अनुवाद

।।10.41।। जो-जो ऐश्वर्ययुक्त, शोभायुक्त और बलयुक्त प्राणी तथा वस्तु है, उस-उसको तुम मेरे ही तेज-(योग-) के अंशसे उत्पन्न हुई समझो।

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टीका

।।10.41।। व्याख्या--'यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा'--संसारमात्रमें जिस-किसी सजी-वनिर्जीव वस्तु, व्यक्ति, घटना, परिस्थिति, गुण, भाव, क्रिया आदिमें जो कुछ ऐश्वर्य दीखे, शोभा या सौन्दर्य दीखे, बलवत्ता दीखे, तथा जो कुछ भी विशेषता, विलक्षणता, योग्यता दीखे, उन सबको मेरे तेजके किसी एक अंशसे उत्पन्न हुई जानो। तात्पर्य है कि उनमें वह विलक्षणता मेरे योगसे, सामर्थ्यसे, प्रभावसे ही आयी है -- ऐसा तुम समझो -- 'तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसम्भवम्'। मेरे बिना कहीं भी और कुछ भी विलक्षणता नहीं है।

भगवद गीता 10.41 - अध्याय 10 श्लोक 41 हिंदी और अंग्रेजी