Bhagavad Gita: Chapter <%= chapter %>, Verse <%= verse %>

मृत्युः सर्वहरश्चाहमुद्भवश्च भविष्यताम्। कीर्तिः श्रीर्वाक्च नारीणां स्मृतिर्मेधा धृतिः क्षमा।।10.34।।

mṛityuḥ sarva-haraśh chāham udbhavaśh cha bhaviṣhyatām kīrtiḥ śhrīr vāk cha nārīṇāṁ smṛitir medhā dhṛitiḥ kṣhamā

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Word Meanings

mṛityuḥdeath
sarva-haraḥall-devouring
chaand
ahamI
udbhavaḥthe origin
chaand
bhaviṣhyatāmthose things that are yet to be
kīrtiḥfame
śhrīḥprospective
vākfine speech
chaand
nārīṇāmamongst feminine qualities
smṛitiḥmemory
medhāintelligence
dhṛitiḥcourage
kṣhamāforgiveness
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अनुवाद

।।10.34।। सबका हरण करनेवाली मृत्यु और उत्पन्न होनेवालोंका उभ्दव मैं हूँ तथा स्त्री-जातिमें कीर्ति, श्री, वाक्, स्मृति, मेधा, धृति और क्षमा मैं हूँ।

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टीका

।।10.34।। व्याख्या--'मृत्युः सर्वहरश्चाहम्'--मृत्युमें हरण करनेकी ऐसी विलक्षण सामर्थ्य है कि मृत्युके बाद यहाँकी स्मृतितक नहीं रहती, सब कुछ अपहृत हो जाता है। वास्तवमें यह सामर्थ्य मृत्युकी नहीं है, प्रत्युत परमात्माकी है।अगर सम्पूर्णका हरण करनेकी, विस्मृत करनेकी भगवत्प्रदत्त सामर्थ्य मृत्युमें न होती तो अपनेपनके सम्बन्धको लेकर जैसी चिन्ता इस जन्ममें मनुष्यको होती है, वैसी ही चिन्ता पिछले जन्मके सम्बन्धको

लेकर भी होती। मनुष्य न जाने कितने जन्म ले चुका है। अगर उन जन्मोंकी याद रहती तो मनुष्यकी चिन्ताओंका, उसके मोहका कभी अन्त आता ही नहीं। परन्तु मृत्युके द्वारा विस्मृति होनेसे पूर्वजन्मोंके कुटुम्ब, सम्पत्ति आदिकी चिन्ता नहीं होती। इस तरह मृत्युमें जो चिन्ता, मोह मिटानेकी सामर्थ्य है, वह सब भगवान्की है।

भगवद गीता 10.34 - अध्याय 10 श्लोक 34 हिंदी और अंग्रेजी