प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानां कालः कलयतामहम्। मृगाणां च मृगेन्द्रोऽहं वैनतेयश्च पक्षिणाम्।।10.30।।
prahlādaśh chāsmi daityānāṁ kālaḥ kalayatām aham mṛigāṇāṁ cha mṛigendro ’haṁ vainateyaśh cha pakṣhiṇām
Word Meanings
अनुवाद
।।10.30।। दैत्योंमें प्रह्लाद और गणना करनेवालोंमें काल मैं हूँ । पशुओंमें सिंह और पक्षियोंमें गरुड मैं हूँ।
टीका
।।10.30।। व्याख्या--'प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानाम्'-- जो दितिसे उत्पन्न हुए हैं, उनको दैत्य कहते हैं। उन दैत्योंमें प्रह्लादजी मुख्य हैं और श्रेष्ठ हैं। ये भगवान्के परम विश्वासी और निष्काम प्रेमी भक्त हैं। इसलिये भगवान्ने इनको अपनी विभूति बताया है।प्रह्लादजी तो बहुत पहले हो चुके थे, पर भगवान्ने 'दैत्योंमें प्रह्लाद मैं हूँ' ऐसा वर्तमानका प्रयोग किया है। इससे यह सिद्ध होता है कि भगवान्के भक्त नित्य
रहते हैं और श्रद्धा-भक्तिके अनुसार दर्शन भी दे सकते हैं। उनके भगवान्में लीन हो जानेके बाद अगर कोई उनको याद करता है और उनके दर्शन चाहता है, तो उनका रूप धारण करके भगवान् दर्शन देते हैं।